नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम जानेंगे राजस्थान के लोकदेवता के बारे में। राजस्थान के इतिहास में लोकदेवता को काफी याद रखा जाता है और इनसे जुड़े हुए कई सवाल राजस्थान की हर परीक्षा में पूछा जाता है लोकदेवता वे होते है जिन्हें हिन्दू धर्म के लोगो द्वारा देवता के रूप में पूजा जाता है लोगो द्वारा किसी व्यक्ति को कई आधारों पर लोकदेवता माना जाता है जैसे गौ - रक्षा के आधार पर , नैतिक चरित्र को देखकर , उनकी आध्यात्मिक प्रवृति को देखकर या उनके अच्छे कार्यों को देखकर जब लोग उसकी देवता के समान पूजा करते है तो उन्हें लोकदेवता के रूप में जाना जाता है।
लोकदेवता धर्म के अनुसार अलग अलग नाम से जाने जाते है। जैसे हिन्दू धर्म में लोकदेवता और मुस्लिम धर्म में इन्हें पीर के नाम से जाना जाता है तो दोस्तों इस लेख में आपको राजस्थान के लोकदेवता बताया गया है जिन्हें राजस्थान में देवता के समान पूजा जाता है।
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राजस्थान के लोक देवता
1. बाबा रामदेव जी
बाबा रामदेव जी राजस्थान के प्रमुख लोकदेवताओं में शामिल है।
- बाबा रामदेव जी पंच पीरों में शामिल है इसलिए इनकी पूजा हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों में की जाती है।
- बाबा रामदेव जी को कई नामों से जाना जाता है जैसे रामसा पीर , रुणेचा रा धणी , लीले घोड़े वाला बाबा आदि
- बाबा रामदेव जी का जन्म 1405 ईस्वी में बाड़मेर जिले की शिव तहसील के उडुकाश्मीर गांव में हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र महीनें भाद्रपद की शुक्ल पक्ष दितीय को हुआ था , इस दिन को राजस्थान विशेष नाम " बाबे री बीज(दूज )" के नाम से जाना जाता है।
- बाबा रामदेव जी के पिता का नाम अजमाल जी और माता का नाम मैणोदे था और यह तंवर वंशीय राजपूत थे।
- बाबा रामदेव जी भगवान विष्णु के अवतार और अर्जुन के वंशज माने जाते है।
- बाबा रामदेव जी के गुरु बालीनाथ जी थे , जिनका मंदिर मसूरिया पहाड़ी जोधपुर में है।
- बाबा रामदेव जी की पत्नी का नाम नेतलदे था जो अमरकोट (वर्तमान पाकिस्तान ) की थी। अमरकोट को पहले अमराणा के नाम से जाना जाता था और यहाँ के राजा दले की पुत्री नेतलदे थी।
- भैरव राक्षस , लखी बंजारा और अन्य कई राक्षसों का वध किया था।
- बाबा रामदेवजी के एक भाई वृह्मदेव और एक बहन सुगनाबाई थी।
- बाबा रामदेवजी के पवित्र चिन्ह को "पगल्यों के रूप में जाना जाता है।
- बाबा रामदेवजी द्वारा दलितों के प्रति हो रहे जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए जम्मा जागरण अभियान चलाया था।
- इसके अलावा इन्होने संप्रदायिक सद्भाव को बढ़ाने के लिए मेघवाल जाती की स्त्री डाली बाई को अपनी बहन बनाया था।
- बाबा रामदेवजी के घोड़े को " लीला " और ध्वजा को "नेजा" के नाम से जाना जाता है।
- रामदेवजी के मंदिर को ग्रामीण इलाके में देवरा के नाम से जाना जाता है इसलिए इनके स्थान को रामदेवरा के नाम से जाना जाता है।
2.गोगाजी
गोगाजी का जन्म भी हिन्दू पवित्र महीने भद्रपद की नवमी को चूरू के ददरेवा में हुआ था।
- गोगा जी को सांपो के देवता और जाहरपीर आदि उपनामों से जाना जाता है। यह नाम महमूद गजनवी ने दिया था जब गोगा जी ने उसके साथ युद्ध किया था।
- गोगाजी के पिता का नाम जेवर और माता का नाम बाछल था और यह चौहान वंश के शासक थे।
- सांचौर में स्तिथ गोगाजी के मंदिर को ओल्डी के नाम से जाना जाता है व इनका समाधि स्थल हनुमानगढ़ के गोगामेड़ी में माना जाता है।
- गोगाजी का थान खेजड़ी के वृक्ष के नीचे होता है जहाँ पर पथर पर पर सांप की आकृति की पूजा होती है।
- गोगाजी का वाहन भी नीले रंग का घोडा होता है
- गोगाजी को हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों द्वारा पूजा जाता है।
- भारत में राजस्थान के अलावा हरियाणा , मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश और पंजाब में भी गोगाजी को पूजा जाता है।
3. वीर तेजाजी महाराज
- वीर तेजाजी महाराज का जन्म 1074 ईस्वी में जाटवंश के धौल्या गौत्र में नागौर के खरनाल में हुआ था।
- तेजाजी के पिता का नाम ताहड़जी और माता का नाम का रामकुंवरी था , इनका विवाह अजमेर के जाट रामचंद्र जी की बेटी पेमल के साथ हुआ था।
- वीर तेजाजी महाराज को कई उपनामों जैसे :- साँपों का देवता, गायों का मुक्तिदाता, कालाबाला का देवता, कृषि कार्यों का उपकारक देवता, धौलिया वीर से जाना जाता है।
- तेजाजी का वाहन घोड़ी थी जिसे लीलण सिंगारे के नाम से जानते है।
- तेजाजी की मृत्यु सैदरिया में नागदेवता के डसने से सुरसुरा ( किशनगढ़ ) में हुई थी। इसलिए इन्हें सर्पदंश के इलाज के लिए प्रमुख लोकदेवता के रूप में माना जाता है।
- नागौर में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को राज्यस्तरीय पशुमेला लगता है, जिससे सरकार को काफी आय होती है।
- वीर तेजाजी महाराज की जन्मस्थली खरनाल ( नागौर ) और कर्मस्थली दुगारी गांव बूंदी मानी जाती है , इसके अलावा इन्हें अजमेर के प्रमुख इष्टदेवता के रूप में पूजा जाता है।
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4. पाबूजी
- पाबूजी का जन्म 1313 ईस्वी में फलोदी जिले के कोलूमण्ड गांव में राठौड़ राजवंश में हुआ था।
- पाबूजी के पिता का नाम धांधलजी राठौड़ और माता का नाम कमला दे था , इनका विवाह अमरकोट ( वर्तमान पाकिस्तान ) के राजा सूरजमल की पुत्री फूलम दे से हुआ था।
- पाबूजी को कई उपनामों जैसे :- ऊँटों का देवता, गौरक्षक देवता, प्लेग रक्षक देवता, हाड़-फाड़ देवता, लक्ष्मण जी का अवतार से जाना जाता है।
- यह भी कहा जाता है की मारवाड़ में सबसे प्रथम ऊँट को पाबूजी लेकर आये थे और इसके अलावा ऊँट की बीमारी के समय पाबूजी की पूजा की जाती है।
- पाबूजी की घोड़ी को केसर कालमी - पाबूजी के लोकगीत फावड़े - पाबूजी का प्रतीक चिन्ह भाला आदि प्रमुख बातें पाबूजी से जुडी हुई है।
- प्राचीनकाल में पाबूजी ने गौ - हत्या को रोकने के लिए मुगल कालीन पाटन शासक मिर्जा खाँ से युद्ध किया था।
5. हड़बूजी महाराज
- हड़बूजी महाराज का जन्म नागौर के मुंडेल गांव में सांखला राजपूत वंश में हूआ था।
- हड़बूजी महाराज बाबा रामदेव जी के मौसेरे भाई थे और इनके गुरु भी योगी बालीनाथजी थे।
- हड़बूजी महाराज के कई उपनाम है जैसे :- वचन सिद्धपुरुष/चमत्कारी पुरुष/शकुन शास्त्र का ज्ञाता/योगी संन्यासी/वीर योद्धा आदि उपनामों से जाना जाता है।
- हड़बूजी महाराज का मंदिर फलोदी - जोधपुर में जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह ने 1721 ईस्वी में बनवाया था।
- हड़बूजी महाराज को शकुन शास्त्र का ज्ञाता माना जाता है , इनकी पूजा के लिए गाड़ी की पूजा की जाती है और सियार को हड़बूजी का वाहन माना जाता है।
6.देवनारायण जी
- देवनारायण जी का जन्म 1243 ईस्वी अशिंद ( भीलवाड़ा ) में बगड़ावत परिवार में हुआ।
- संवाईभोज और सेडू खटाणी देवनारायण जी के माता - पिता थे।
- देवनारायण जी का विवाह मध्यप्रदेश ( धार ) के राजा जयसिंह की पुत्री पीपलदे से हुआ।
- देवनारायण जी को विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है और गुर्जर समाज के लोग इन्हें आराध्य देवता मानते है।
- देवनारायण जी को बचपन में उदयसिंह के नाम से जाना जाता था व इन्हें चमत्कारी लोह पुरुष के उपनाम से भी जाना जाता है।
- देवनारायण जी की घोड़ी को लीलागर - उपदेश को " फंड "
- और मेला भाद्रपद सप्तमी को लगता है
- देवनारायण जी के मंदिर में ईंट की पूजा की जाती है।
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7. वीर कल्लाजी राठौड़
- वीर कल्लाजी राठौड़ का जन्म 1601 ईस्वी में नागौर के सामियाना में हुआ था लेकिन वे मेड़ता में निवास करते थे।
- वीर कल्लाजी राठौड़ के पिता का नाम आससिंह था।
- वीर कल्लाजी राठौड़ को शेषनाग का अवतार, चार भुजाओं वाले देवता आदि उपनामों से जाना जाता था।
- वीर कल्लाजी राठौड़ के गुरु भैरवनाथ थे और मीराबाई बुआ थी।
- वीर कल्लाजी राठौड़ की छतरी चित्तौरगढ़ में स्तिथ है जहाँ पर हर वर्ष आश्विन मास की नवमी को मेला लगता है।
- वीर कल्लाजी राठौड़ की काली मूर्ति की पूजा डूंगरपुर में होती है और यह पीठ रनेला गांव में स्तिथ है।
- वीर कल्लाजी राठौड़ एक आयुर्वेदिक चिकित्स्क थे उन्हें जड़ी बूटियों और योगाभ्यास की काफी जानकारी थी।
- वीर कल्लाजी राठौड़ दक्षिण राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता मने जाते है।
8. बाबा मामादेव जी
- बाबा मामादेव जी को बारिश के लोकदेवता के रूप में जाना जाता है।
- बाबा मामादेव जी की कोई मूर्ति नहीं है इन्हें एक लकड़ी की तोरण के रूप में पूजा जाता है।
- बाबा मामादेव जी का मंदिर सीकर के स्यालोदड़ा में स्तिथ है जहाँ पर हर वर्ष रामनवमी के दिन मेला लगता है।
- बाबा मामादेव जी को शेखावटी में काफी माना जाता है और गाँवो के बाहर की तरफ इनका मंदिर देखने को मिलता है।
- बाबा मामादेव जी के मंदिर में " भैंसे की कुर्बानी " दी जाती है।
9. तल्लीनाथ जी
- तल्लीनाथ जी का वास्तविक नाम गांगदेव राठौड़ था और यह जोधपुर के राव मालदेव के भाई बीरमदेव के पुत्र थे।
- तल्लीनाथ जी का यह नाम उनके गुरु जालंधर नाथ जी ने रखा था जो नाथ संप्रदाय के थे।
- तल्लीनाथ जी की पूजा जालौर के पांचोटा गांव के पास की जाती है वहाँ पर तल्लीनाथ जी की घोड़े पर सवार मूर्ति है।
- तल्लीनाथ जी प्रकृति प्रेमी लोकदेवता माने जाते है इस कारण इनकी पूजा के आस पास स्थान पर कोई पेड़ पौधे नहीं काटता है।
- किसी भी जहरीले जीव को काटने पर इनके नाम का धागा ( तांती ) बांधने पर जहरीला प्रभाव नष्ट होता है।
10 .इलोजी
- इलोजी मारवाड़ में कई किस्सों से प्रचलित लोकदेवता है जैसे माना जाता है इलोजी की पूजा करने से अविवाहितों को दुल्हन, नव दम्पतियों को सुखद गृहस्थ जीवन और बांझ स्त्रियों को संतान प्राप्ति होती है।
- इलोजी जिंदगी भर कुंवारे थे क्युंकि वे होलिका से शादी करने के लिए बारात लेकर गए थे लेकिन होलिका अग्नि में जल गयी थी और फिर वे काफी दुखी हुए कभी शादी नहीं की।
- इलोजी को हिरणकश्यप का बहनोई भी कहा जाता है।
- इलोजी का सबसे प्रचलित मंदिर जैसलमेर में है जहाँ पर इनकी नग्न अवस्था में मूर्ति की पूजा होती है।
- इलोजी को क्षत्रिय व गाछी समुदाय और पश्चिमी जैसलमेर में काफी लोकप्रियता प्राप्त है।
निष्कर्ष
दोस्तों उम्मीद करता हूँ आपको यह लेख राजस्थान के लोकदेवता पसंद आया होगा और यह आपके लिए लाभकारी साबित होगा। लेख में किसी भी प्रकार का डॉउट है तो कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है। किसी भी राजस्थान में होने वाली नौकरी परीक्षा में आपको यह लेख काफी फायदेमंद साबित होगा क्यूँकि हर परीक्षा में राजस्थान के लोकदेवताओं से जुड़े काफी नंबर के सवाल पूछे जाते है।
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